त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
तज्ञमज्ञान – पाथोधि – घटसंभवं, सर्वगं, सर्वसौभाग्यमूलं ।
अर्थ- आपकी जटाओं से ही गंगा बहती है, आपके गले में मुंडमाल है। बाघ की खाल के वस्त्र भी आपके तन पर जंच रहे हैं। आपकी छवि को देखकर नाग भी आकर्षित होते हैं।
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥
नित्त नेम उठि प्रातः ही, पाठ करो चालीसा।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव…॥
गिरिन्द्रात्मजासंग्रहीतार्धदेहं गिरौ संस्थितं सर्वदा सन्नगेहम् ।
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥
द्वादश ज्योतिर्लिंग मंत्र
अर्थ: हे शिव शंकर आप website तो संकटों का नाश करने वाले हो, भक्तों का कल्याण व बाधाओं को दूर करने वाले हो योगी यति ऋषि मुनि सभी आपका ध्यान लगाते हैं। शारद नारद सभी आपको शीश नवाते हैं।
अयोध्यादास आस कहैं तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥